सुनो, सुनो


सुनो,
रुको वहीं
आधी रात बाद
हालांकि साफ नहीं है मौसम
बहुत साफ नहीं है हवा
तमाम खतरों के बीच
तमाम विकल्पहीनता के बाद
तुम वहीं रुको
मैं एक विस्थापित-
अपनी जगह से
अपनी उमर से
अपनी ही आत्मा से
बेदखल होता
अपनी ही देह से
फेंक दिया जाता बाहर
मैं एक विस्थापित
तुम्हें पुकार कर कहता हूँ
तुम उन्हें पुकार कर कहो
कि वे उन्हें पुकार कर कहें
कि सब वहीं रुकें
अपनी बंजर जमीनों के पास
चटके हुए चाँद को देखें
कुओं का बचा-खुचा पानी
प्यास और प्रार्थना के काम लाएं
उम्मीद है कि
आसमान एक दिन तुम्हारे लिए
वापस लौटेगा
बस, सिर्फ इतना करो
सब के सब वहीं रुको
जमीन के पास हमारी भूख के लिए अन्न है
जमीन के पास
आसमान में भेज देने के लिए जल-भाप

आधी रात को ट्रेनें पकड़कर
मौसम में गुड़ी-मुड़ी होकर गलत निर्णयों से पहले
शहर के अंधे कुएं में तुम्हारे उतरने से पहले
मैं सावधान करता हूँ
थोड़ा धीरज रखो
थोड़ा थामो छोड़े हुए एक दूसरे के कांधे
और सवाल करो?
कि आखिर भूख से बिलबिलाती
अंतड़ियों के साथ
तुम मेनहोलों के पाइप में क्यूँ
बिताना चाहते हो रात।

मैं एक विस्थापित-
तुम्हारे लिए कुछ नहीं कर सकता
तुम्हारे लिए कुछ नहीं कह सकता
सिर्फ इतना कि
तुम्हें वहीं रुकना चाहिए
कि तुम्हें तुम्हारे नाम से पुकारा जाता रहे
तुम्हारे जनपद
तुम्हारे गाँव से जुड़ा रहे तुम्हारा नाम।

धरती की बची हुई घास को नोचकर
खुद को रखो जिंदा
या उजाड़कर चूस लो पेड़ की छाल
किसी भी तरह
तुम्हें वहीं रुकना होगा
जहां हमारे पुरखों की आत्मा है
विस्थापित कह कर पुकारे जाओ
इससे पहले

वहीं रुको।

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