ती-ती वित्त
चिड़िया आदमियों की तरह नहीं होती। आदमी चिड़िया की तरह नहीं। चिड़िया ताश खेलना नहीं जानती। चिड़िया ने बीड़ी और सिगरेट की कश कभी नहीं ली। चिड़िया कभी सिनेमाघर के भीतर नहीं गई। आदमी अक्सर फिल्में देखने जाते हैं और अक्सर कोई फिल्मी गाना गाते रहते हैं। मैंने खुद से और कई बार कई अनुभवी लोगों से पूछा कि क्या कोई चिड़िया भी कभी उनके साथ सिनेमा देखने गई। अपनी पुरानी याद खुजाने के बाद उन्हें ऐसा कोई वाकया नहीं याद आया। बस इतना ही कि जब आदमी दफ्तरों में होते, ट्रेन, बसों या कारों में सवार होते। घरों में होते, सिनेमाघरों में फिल्मी कहानी में डूबते-उतराने रहते, चिड़िया आदमी के आस-पास... होती।
आदमी और चिड़िया में कोई एक फर्क नहीं होता। आदमी कई बार बहुत कम बोलकर भी चिड़िया से कई गुना ज्यादा बोलते। गप-शप करते और खाते-पीते रहते। कुछ और नहीं कहते तो यही कहते कि खाते-पीते रहना चाहिए। चिड़िया सिर्फ इतना खाती कि उड़ सके।
चिड़िया को हर रोज उड़ कर आना है। हर रोज उड़ कर जाना है। आदमी के पास 24 घंटे का वक्त और कई घड़ियां । चिड़िया के पास कोई घड़ी नहीं । और कम वक्त। वह बहुत कम खाती और कम में बोलती है। तमाम खतरे उठाकर चिड़िया की जान आसमान में सीना तानकर उड़ती है।
अभी इस वक्त हमारे आस-पास कोई चिड़िया है। जिसने दो दाने चुग लिए बस... कोई दो बात भर बोलेगी बस... फिर उड़ जाएगी...
सुनिए, चिड़िया बोल रही है...
तीती वित्त... तीती वित्त...
सुनिए, चिड़िया बोल रही है...
तीती वित्त... तीती वित्त...
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