और गहरी हो रही है रात


अँधेरा है और रात अभी आनी बाकी है
अंदाजना मुश्किल नहीं-
दीवारों पर बरसात में गल गए
धुँधले चुनावी पोस्टरों के चकत्ते चिपके हैं
ताज्जुब है कि
नयी हिदायतें कहीं भी चस्पाँ नहीं हैं
अभी,चमगादड़ अँधेरी जगहों से निकल हमारे आस-पास चले आए हैं
और हम किसी गँधाती गुफा में
जहाँ हजार बरस की दुर्गंध में
फेंका गया है ढेला
अँधेरे के हजारों बाँध जानबूझकर खोल दिए गए है
एक शांत उफान हमारे हर तरफ है

कुछ लोग जानना चाहते हैं टीवी पर खबर
टीवी चुप है
नौसिखिये रिपोर्टरों के पास अँधेरे में डूब रहे दृश्यों के बयान की भाषा नहीं है
इतनी चुप्पी
घुप्प अँधेरा है
हमारी साँस वायुमंडल में गूँजती है
जैसे कोई खाली कमरा
घुप्प अँधेरा है

किताबें प्रतिबंधित
चमगादड़ तारों की सँख्या में उड़ान भर रहे हैं।

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