वापस जाओ


बिजलियों के खिंचे हुए तार
वापस ले जाओ।

हमारे घरों तक आने से पहले ही
मुड़ जाने वाली सड़क
पीछे ले जाओ।


हवा के गलियारों में
हमें नहीं चाहिए जहरीली चिमनियां,
हमारी नदी तुम्हारे घर का पिछवाड़ा नहीं
वहाँ हम आते-जाते हैं

अपनी जीभ
अपनी आँख
ले जाओ वापस
लौटते पाँवों के निशान के साथ
हमें नहीं चाहिए
तुम्हारा राशन-पानी।

हम मौसम के बारे में जानते हैं
हम मिट्‌टी के बारे में जानते हैं
हम हवा के बारे में जानते हैं
हम पानी के बारे में जानते हैं
हमें पुरखों की याद है
हल उन्होंने बनाए थे
कुदालें उन्होंने
नरकुलें उन्होंने उगायी थीं
हम इनसे उगा लेंगे अन्न
हम इनसे बना लेंगे घर
और रास्ता।

हम जानते हैं
अपनी बात कहना
हम न्याय करता जानते हैं।
हम छोटी ही सही, जैसे भी सही
अपनी दुनिया बचाने की/बनाने की
कोशिश करना चाहते हैं।
हम फिर से बनायेंगे लिपियाँ
नयी भाषा
और उसमें बात करेंगे।

तो बंद करो बजाना बाजा
बंद करो, ध्वनि-तरंगें।
बटोर लो तमाशा, अभी
और वापस जाओ।

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